
# देहरादून का अंतरराष्ट्रीय आइस रिंक: एक पुनर्जागरण की कहानी
## परिचय
देहरादून 28 मई 2025: देहरादून का अंतरराष्ट्रीय स्तर का आइस स्केटिंग रिंक, जो महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज परिसर में स्थित है, हाल ही में 13 साल के लंबे अंतराल के बाद पुनर्जीवित हुआ है। यह न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे दक्षिण एशिया का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर का आइस स्केटिंग रिंक है जिसने हाल में अपनी खोई हुई चमक वापस पाई है ।
## ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इस आइस रिंक का निर्माण 2011 में साउथ एशियन विंटर गेम्स के आयोजन के लिए किया गया था, जिसमें भारत के अलावा पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों ने भाग लिया था । इसके निर्माण पर करोड़ो रुपये की लागत आई थी और इसे विदेशों से आयातित अत्याधुनिक मशीनरी से सुसज्जित किया गया था ।
हालांकि, खेलों के बाद यह रिंक उपेक्षा का शिकार हो गया। बिजली के भारी खर्च और रखरखाव की चुनौतियों के कारण यह लगभग 13 वर्षों तक बंद पड़ा रहा । इस दौरान रिंक की मशीनों में जंग लग गई और पूरा परिसर खंडहर में तब्दील होने लगा ।
## पुनरुद्धार की कहानी
2024-25 में उत्तराखंड सरकार ने इस रिंक को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, “चाहे हमें विदेश से इंजीनियर्स ही क्यों न बुलाने पड़ें, हम इस आइस स्केटिंग रिंक को फिर से शुरू करेंगे” । अमेरिका और कनाडा से मशीनों के पुर्जे मंगवाए गए और करीब एक साल के प्रयास के बाद रिंक को फिर से चालू किया जा सका ।
बिजली के खर्च को कम करने के लिए रिंक के ऊपर सोलर प्लांट स्थापित किया गया, जो न केवल रिंक की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करता है बल्कि अतिरिक्त बिजली ग्रिड को भी देता है । इस सौर ऊर्जा प्रणाली से बिजली की भी बचत हो रही है ।
## वर्तमान स्थिति और सुविधाएं
आज यह रिंक पूरी तरह से कार्यात्मक है और इसमें नियमित प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। खेल विभाग ने शाम को 4 घंटे इस आइस रिंक को आम लोगों के लिए खुला रखा है, जिससे यह सोशल मीडिया सेंसेशन बन गया है। हालांकि आइस स्केटिंग करना देखने में जितना आसान लगता है वास्तव में उतना आसान है नहीं, इसके लिए कड़े प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है, आइस स्केटिंग शूज पहनकर खड़े होना ही काफी चुनौती पूर्ण होता है, इसके लिए जिन लोगों ने इनर लाइन स्केटिंग की हो उन्हें सुविधा होती है व बैलेंस बनाना आसान होता है। प्रशिक्षित ट्रेनर के माध्यम से बच्चे इसको बहुत आसानी से सीख जाते हैं। आइस स्केटिंग करते समय हेलमेट में जरूरी सुरक्षा एसेसरीज पहनाना भी आवश्यक होता है।
रिंक की मुख्य विशेषताएं:
– 60×30 मीटर का बड़ा आकार जिसमें 3,000 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था
– अत्याधुनिक कूलिंग सिस्टम जो सीमेंटेड फ्लोर पर बर्फ जमा सकता है
– हाईटेक सॉफ्टवेयर जिससे रिमोट से संचालन संभव है
– साउथ एशिया का सबसे बड़ा आइस स्केटिंग रिंक
## खिलाड़ियों के लिए नई संभावनाएं
इस रिंक के पुनर्निर्माण से भारतीय आइस हॉकी टीम को बड़ी राहत मिली है। टीम की प्रवक्ता ने बताया कि अब तक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए केवल प्राकृतिक बर्फ पर ही अभ्यास किया था, यह पहली बार है जब उन्हें कृत्रिम आइस रिंक पर प्रशिक्षण का अवसर मिला है ।
लद्दाख और हिमाचल से आए खिलाड़ियों ने बताया कि प्राकृतिक बर्फ की तुलना में इस रिंक पर बर्फ अधिक चिकनी और पेशेवर स्तर की है, जिससे उन्हें बेहतर प्रशिक्षण का अवसर मिल रहा है ।
## भविष्य की योजनाएं
आइस स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने इस रिंक में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित करने का प्रस्ताव भेजा है । सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले समय में यहां नियमित रूप से बड़े टूर्नामेंट्स आयोजित किए जाएं ।
इसके अलावा, स्कूली बच्चों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं ताकि उन्हें इस दुर्लभ खेल में महारत हासिल करने का अवसर मिल सके ।
## निष्कर्ष
देहरादून का अंतरराष्ट्रीय आइस रिंक उत्तराखंड सरकार के “देवभूमि को खेलभूमि” बनाने के संकल्प का प्रतीक बन गया है । इसके पुनर्जीवन से न केवल स्थानीय खिलाड़ियों को लाभ मिलेगा बल्कि यह पूरे देश के आइस स्पोर्ट्स के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सोलर ऊर्जा से संचालित यह रिंक पर्यावरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है ।
यह रिंक अब एक बार फिर से देहरादून की पहचान बन गया है और सोशल मीडिया पर इसके वीडियो व फोटो खूब वायरल हो रहे हैं, जो इसकी बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है । आने वाले वर्षों में यह निश्चित रूप से भारत के शीतकालीन खेलों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।