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उत्तराखंड समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 के तहत वसीयत एवं पूरक प्रलेख

Date 23.01.2025

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 के तहत वसीयत एवं पूरक प्रलेख (Testamentary Succession)

देहरादून 23 जनवरी 2025:  उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू “उत्तराखंड समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024” वसीयत (Will) और पूरक प्रलेख (Codicil) के निर्माण एवं रद्द करने (टेस्टामेंटरी सक्सेशन) के लिए एक सुव्यवस्थित ढाँचा प्रदान करता है। इस अधिनियम में वसीयत से जुड़े विभिन्न पहलुओं की विस्तार से चर्चा की गई है।

राज्य द्वारा सशस्त्र बलों में उत्कृष्ट योगदान देने की परंपरा को देखते हुए, अधिनियम में “प्रिविलेज्ड वसीयत” को विशेष रूप से महत्व दिया गया है। इसके अनुसार, सक्रिय सेवा या तैनाती पर रहने वाले सैनिक, वायुसैनिक अथवा नौसैनिक, वसीयत को सरल और लचीले नियमों के तहत तैयार कर सकते हैं—चाहे वह हस्तलिखित हो, मौखिक रूप से निर्देशित की गई हो, या गवाहों के समक्ष शब्दशः प्रस्तुत की गई हो। इस सुव्यवस्थित प्रक्रिया का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कठिन व उच्च-जोखिम वाली परिस्थितियों में तैनात व्यक्ति भी अपनी संपत्ति-संबंधी इच्छाओं को प्रभावी ढंग से दर्ज करा सकें। उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक स्वयं अपने हाथ से वसीयत लिखता है, तो उसके लिए हस्ताक्षर या साक्ष्य (अटेस्टेशन) की औपचारिकता आवश्यक नहीं होती, बशर्ते यह स्पष्ट हो कि वह दस्तावेज़ उसी की इच्छा से तैयार किया गया है। इसी तरह, यदि कोई सैनिक या वायुसैनिक मौखिक रूप से दो गवाहों के समक्ष वसीयत की घोषणा करता है, तो उसे भी प्रिविलेज्ड वसीयत माना जा सकता है, हालाँकि यह एक माह बाद स्वतः अमान्य हो जाएगी यदि वह व्यक्ति तब भी जीवित है और उसकी विशेष सेवा-स्थितियाँ (सक्रिय सेवा आदि) समाप्त हो चुकी हैं।

इसके अतिरिक्त, यह भी संभव है कि कोई अन्य व्यक्ति सैनिक के निर्देशानुसार वसीयत का मसौदा तैयार करे, जिसे सैनिक ज़बानी या व्यवहार से स्वीकार कर ले; ऐसी स्थिति में भी उसे मान्य प्रिविलेज्ड वसीयत का दर्जा प्राप्त होगा। यदि सैनिक ने वसीयत लिखने के लिखित निर्देश दिए थे, पर उसे अंतिम रूप देने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई, तब भी उन निर्देशों को वसीयत माना जाएगा, बशर्ते यह प्रमाणित हो कि वह उन्हीं की इच्छाएँ थीं। इसी तरह, यदि दो गवाहों के सामने मौखिक निर्देश दिए गए और वे गवाह सैनिक के जीवनकाल में लिखित रूप में दर्ज कर पाए, पर दस्तावेज़ को औपचारिक रूप से अंतिम रूप नहीं दिया जा सका, तो भी ऐसे निर्देशों को वसीयत का दर्जा मिल सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रिविलेज्ड वसीयत को भविष्य में सैनिक द्वारा चाहें तो एक नई प्रिविलेज्ड वसीयत (या कुछ परिस्थितियों में साधारण वसीयत) बनाकर रद्द या संशोधित भी किया जा सकता है, जिससे सैनिक की नवीनतम इच्छाएँ प्रतिबिंबित हों। यह संपूर्ण व्यवस्था उन जवानों के हितों की रक्षा करती है, जो विषम परिस्थितियों में रहते हुए भी अपनी संपत्ति से संबंधित निर्णय स्पष्ट रूप से दर्ज कराना चाहते हैं।

जनसाधारण को सुविधाजनक और नागरिक-अनुकूल विधिक प्रक्रियाएँ उपलब्ध कराने की राज्य सरकार की प्रतिबद्धता के तहत, इन सेवाओं को शीघ्र ही एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जाएगा। इससे आवेदन प्रक्रिया अधिक तेज़, सुचारु और कागज़ी कार्रवाई से मुक्त हो सकेगी, साथ ही एक सुदृढ़ डिजिटल रिकॉर्ड भी उपलब्ध रहेगा। ध्यान रहे कि वसीयत बनाना किसी के लिए अनिवार्य नहीं है; यह एक व्यक्तिगत निर्णय है। फिर भी, जो व्यक्ति अपनी संपत्ति के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित करना चाहते हैं, उनके लिए यह अधिनियम एक सुरक्षित और सरल व्यवस्था प्रस्तुत करता है।

उप-निबंधकों, निबंधकों (Registrars) तथा महानिबंधक (Registrar General) की नियुक्ति यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि सभी आवेदनों का निपटान निश्चित समय-सीमा में हो। यह ढाँचा राज्य के नागरिकों को उनकी विधिक आवश्यकताओं के संदर्भ में प्रभावी सहयोग एवं पारदर्शिता प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

NewsGrid Desk

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